संक्षेप:
- मेट्रों केवल राजधानी की ही रहेगी शान
- प्रस्ताव को केंद्र ने किया नामंजूर
- सपा नेता बोले, शहर में मेट्रो बहुत जरूरी
कानपुरः कानपुर में मेट्रो चलाने का सपना कागजों में ही सिमट कर रह गया है। दरअसल केंद्र सरकार के नए फैसले से कानपुर सहित उत्तर प्रदेश के पांच शहरों में मेट्रो दौड़ाने के सपने का तगड़ा झटका लगा है। नई मेट्रो रेल पॉलिसी के चलते केंद्र को भेजी गई डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट वापस कर दी गई है। केंद्र ने नई पॉलिसी के हिसाब से डीपीआर में कई संशोधन करने के लिए शहरी विकास विभाग को प्रस्ताव वापस भेजा है।
वहीं कानपुर सपा विधायक अमिताभ बाजपेई ने बताया कि कानपुर वासियों के लिए मेट्रो बहुत जरूरी है लेकिन बीजेपी सरकार इसके प्रति गंभीर नहीं है। हालांकि बीजेपी के पूर्व विधायक नीरज चतुर्वदी की मानें तो उन्होंने भी माना कि मेट्रो की बहुत आवश्यकता है।
16 अक्तूबर, 2016 को मेट्रो मैन श्रीधरन ने बीएचयू से भेल और बेनियाबाग से सारनाथ तक 29 किमी लंबे मेट्रो कॉरिडोर परियोजना का खाका खींचा था। उन्होंने प्रस्तावित मेट्रो रूट का निरीक्षण भी किया था। तब श्रीधरन ने 2021 तक पहले चरण में मेट्रो चलाने की बात कही थी। वाराणसी में इस परियोजना पर 17.258 हजार करोड़ रुपये खर्च होने थे। केंद्र ने नई पॉलिसी के हिसाब से डीपीआर में कई संशोधन करने के लिए शहरी विकास विभाग को प्रस्ताव वापस भेजा है।
केंद्र ने नई पॉलिसी के हिसाब से डीपीआर में कई संशोधन करने के लिए शहरी विकास विभाग को प्रस्ताव वापस भेजा है। नई पॉलिसी इसी साल अगस्त में केंद्रीय कैबिनेट में पास की गई थी। वाराणसी मेट्रो की डीपीआर लखनऊ मेट्रो रेल कॉरपोरेशन और वीडीए ने मिलकर तैयार की थी।
इसे राज्य सरकार ने फरवरी 2016 को स्वीकृति के लिए केंद्र सरकार को भेजा था। वीडीए के उपाध्यक्ष पुलकित खरे ने बताया कि केंद्र ने राज्य सरकार को डीपीआर वापस कर दी है लेकिन अभी शासन से इस संबंध में कोई निर्देश नहीं मिला है।
बहरहाल मेट्रो की राह में नई अड़चन के बाद अब कानपुर वासियों के लिए इसका इंतजार और लंबा हो गया। कानपुर के साथ ही यूपी के पांच और शहरों की भी डीपीआर लौटा दी गई है। इनमें कानपुर, आगरा, मेरठ, इलाहाबाद और गोरखपुर शामिल है। अब देखना होगा कि योगी सरकार इसे कितनी गंभीरता से लेती है।